04-12-85  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

संकल्प की भाषा - सर्वश्रेष्ठ भाषा

सर्व समर्थ सर्वशक्तिवान शिवबाबा बोले

आज बापदादा के सामने डबल रूप में डबल सभा लगी हुई है। दोनों ही स्नेही बच्चों की सभा है। एक है साकार रूपधारी बच्चों की सभा। दूसरी है आकारी स्नेही स्वरूप बच्चों की सभा। स्नेह के सागर बाप से मिलन मनाने के लिए चारों ओर के आकार रूपधारी बच्चे अपने स्नेह को बापदादा के आगे प्रत्यक्ष कर रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों के स्नेह के संकल्प, दिल के भिन्न-भिन्न उमंग-उत्साह के संकल्प, दिल की भिन्न-भिन्न भावनाओं के साथ-साथ स्नेह के सम्बन्ध के अधिकार से अपने दिल के हाल-चाल, अपनी भिन्न-भिन्न प्रवृत्ति के परिस्थितियों के हाल-चाल, सेवा के समाचारों का हाल-चाल, नयनों की भाषा से, श्रेष्ठ स्नेह के संकल्पों की भाषा से बाप के आगे स्पष्ट कर रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों की रूह-रूहान तीन रूपों से सुन रहे हैं। एक नयनों की भाषा में बोल रहे हैं। 2. भावना की भाषा में, 3. संकल्प की भाषा में बोल रहे हैं। मुख की भाषा तो कामन भाषा है। लेकिन यह तीन प्रकार की भाषा रूहानी योगी जीवन की भाषा है। जिसको रूहानी बच्चे और रूहानी बाप जानते हैं। और अनुभव करते हैं। जितना-जितना अन्तर्मुखी स्वीट साइलेन्स स्वरूप में स्थित होते जायेंगे - उतना इन तीन भाषाओं द्वारा सर्व आत्माओं को अनुभव करायेंगे। यह अलौकिक भाषायें कितनी शक्तिशाली हैं। मुख की भाषा सुनकर और सुनाकर मैजारिटी थक गये हैं। मुख की भाषा में किसी भी बात को स्पष्ट करने में समय भी लगता है। लेकिन नयनों की भाषा इशारा देने की भाषा है। मन के भावना की भाषा चेहरे के द्वारा भाव रूप में प्रसिद्ध होती हैं। चेहरे का भाव मन की भावना को सिद्ध करता है। जैसे कोई भी किसी के सामने जाता है, स्नेह से जाता है वा दुश्मनी से जाता है, वा कोई स्वार्थ से जाता है तो उसके मन का भाव चेहरे से दिखाई देता है। किस भावना से कोई आया है वह नैन-चैन बोलते हैं। तो भावना की भाषा चेहरे के भाव से जान भी सकते हो, बोल भी सकते हो। ऐसे ही संकल्प की भाषा यह भी बहुत श्रेष्ठ भाषा है। क्योंकि संकल्प शक्ति सबसे श्रेष्ठ शक्ति है, मूल शक्ति है। और सबसे तीव्रगति की भाषा यह संकल्प की भाषा है। कितना भी कोई दूर हो, कोई साधन नहीं हो लेकिन संकल्प की भाषा द्वारा किसी को भी मैसेज दे सकते हो। अन्त में यही संकल्प की भाषा काम में आयेगी। साइन्स के साधन जब फेल हो जाते हैं तो यह साइलेन्स का साधन काम में आयेगा। लेकिन कोई भी कनेक्शन जोड़ने के लिए सदा लाइन क्लीयर चाहिए। जितना-जितना एक बाप और उन्हीं द्वारा सुनाई हुई नॉलेज में वा उसी नॉलेज द्वारा सेवा में सदा बिजी रहने के अभ्यासी होंगे उतना श्रेष्ठ संकल्प होने के कारण लाइन क्लीयर होगी। व्यर्थ संकल्प ही डिस्टर्बेन्स हैं। जितना व्यर्थ समाप्त हो समर्थ संकल्प चलेंगे उतना संकल्प श्रेष्ठ, भाषा इतनी ही स्पष्ट अनुभव करेंगे। जैसे मुख की भाषा से अनुभव करते हो। संकल्प की भाषा सेकण्ड में मुख की भाषा से बहुत ज्यादा किसी को भी अनुभव करा सकते हैं। तीन मिनट के भाषण का सार सेकण्ड में संकल्प की भाषा से अनुभव करा सकते हो। सेकण्ड में जीवन-मुक्त का जो गायन है वह अनुभव करा सकते हो।

अन्तर्मुखी आत्माओं की भाषा, यही अलौकिक भाषा है। अभी समय प्रमाण इन तीनों भाषाओं द्वारा सहज सफलता को प्राप्त करेंगे। मेहनत भी कम, समय भी कम। लेकिन सफलता सहज है। इसलिए अब इस रूहानी भाषा के अभ्यासी बनो। तो आज बापदादा भी बच्चों के इन तीनों रीति की भाषा सुन रहे हैं। और सभी बच्चों को रेसपाण्ड दे रहे हैं। सभी के अति स्नेह का स्वरूप बापदादा देख स्नेह को, स्नेह के सागर में समा रहे हैं। सभी की यादों को सदा के लिए यादगार रूप बनने का श्रेष्ठ वरदान दे रहे हैं। सभी के मन के भिन्न-भिन्न भाव को जान सभी बच्चों के प्रति सर्व भावों का रेसपाण्ड - सदा निर्विघ्न भव, समर्थ भव, सर्व शक्ति सम्पन्न भव की शुभ भावना, इस रूप में दे रहे हैं। बाप की शुभ भावना जो भी सब बच्चों की शुभ कामनायें हैं, परिस्थिति प्रमाण सहयोग की भावना है वा शुभ कामना है, वह सभी शुभ कामनायें बापदादा की श्रेष्ठ भावना से सम्पन्न होती ही जायेंगी। चलते-चलते कभी-कभी कई बच्चों के आगे पुराने हिसाब-किताब इसी में ही रूचि रखते हैं। ज्यादा कमाई का साधन भी यही बना हुआ है। अच्छा- तो सब नाचते-गाते, आगे बढ़ते रहते हैं। (आजकल सम्पर्क वाली आत्मायें अच्छी मददगार हैं, खुद ही सब प्लैन बनाते जा रहे हैं) अच्छा है, ऐसे ही होना है तब तो आप लोग वानप्रस्थ में जायेंगे। वाणी से परे स्थिति में जाना है। जब दूसरे जिम्मेवारी उठायेंगे तब तो आप लोग वानप्रस्थी बन सभी को वानप्रस्थ में ले जायेंगे। अभी तो अपनी स्टेज बनानी पड़ती है फिर स्टेज बनी बनाई मिलेगी। यही सेवा की सफलता है जो बनाने वाले दूसरे हो और आप सिर्फ आशीर्वाद देकर आओ।

सभी को सेवा करना सिखा दिया है ना? तो जो सीख गये, किसलिए सीखे? करने के लिए सीखे हैं ना। अभी ज्यादा माथा लगाने की जरूरत ही नहीं है। जैसे स्वर्ग में सब बना बनाया होगा। सिर्फ यह कहेंगे - चलिए हजूर, बैठिये हजूर! ऐसे अभी भी सब बना बनाया मिलेगा। यहाँ ही सेवा की स्टेज में फाउण्डेशन पड़ता है। सतयुग में कोई मेहनत करनी पड़ेगी? तो मेहनत की सफलता का फल अभी से ही प्रत्यक्ष रूप में अनुभव करेंगे तब वह संस्कार प्रैक्टिकल में आयेंगे। अभी ज्यादा माथा लगाने वाली सेवा का स्वरूप ही बदलना है। जहाँ ज्यादा माथा लगाते हैं वहाँ ज्यादा स्वभाव का भी माथा टकराता है। अभी सहज स्वाभाविक रूप में सफलता अनुभव करेंगे। अच्छा - दादी की साथी बन गई, यह भी बहुत अच्छा किया। यह भी ड्रामा में पार्ट है। ऐसे ही एकदो के संकल्प उड़ाते रहेंगे। संकल्प पहुँचा और प्रैक्टिकल हुआ। एक ने कहा दूसरे ने माना यह भी श्रेष्ठ कर्म करके दिखाने के निमित्त बनो। क्यों, क्या नहीं किया ना। हाँ जी कर लिया ना। ऐसे ही हल्के सभी बन जाएँ तो फिर क्या होगा? सभी उड़ते पंछी हो जायेंगे। आज यहाँ कल वहाँ। जैसे पंछी कभी किसी डाली पर बैठते, कभी किसी डाली पर बैठते, उड़ते रहते। ऐसे उड़ते पंछी बन जायेंगे। जिस डाली पर बैठे वही घर है। तो ऐसा संस्कार भरना ही है। ऐसा सभी सीख गये हो ना! कभी भी आर्डर आयेगा तो ‘क्या-क्यों’ तो नहीं करेंगी ना! जब सेवा स्थान कहते हो तो सेवा स्थान का अर्थ क्या हुआ? कभी भी कोई सेन्टर को घर तो नहीं कहते हैं ना। सेवा स्थान कहते हैं, प्रवृत्ति वालों का घर है लेकिन जो ब्राह्मण बन गये उनके सेवा स्थान हैं। सेवा स्थान अर्थात् सेवा के लिए हैं। तो जहाँ सेवा हैं वहाँ हाजर। घर होगा तो छोड़ने में मुश्किल होगा। सेवा स्थान है तो जहाँ भी सेवा है वह सेवा स्थान है। अच्छा - ऐसे सभी एवररेडी बनो।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - 1. सुना तो बहुत है। आखिर हिसाब निकालो, सुनने का अन्दाज क्या है? सुनना और करना दोनों ही साथ-साथ हैं? या सुनने और करने में अन्तर पड़ जाता हैं? सुनते किसलिए हो? करने के लिए ना! सुनना और करना जब समान हो जायेगा तो क्या होगा? सम्पन्न हो जायेंगे ना। तो पहले-पहले सम्पूर्ण स्थिति का सैम्पल कौन बनेगा? हरेक यह क्यों नहीं कहते हो कि - ‘मैं बनूँगा’। इसमें जो ओटे सो अर्जुन। जैसे बाप ने स्वयं को निमित्त बनाया ऐसे जो निमित्त बनता वह ‘अर्जुन’ बन जाता। अर्थात् अव्वल नम्बर में आ जाता है। अच्छा - देखेंगे कौन बनता है! बापदादा तो बच्चों को देखना चाहते हैं। वर्ष बीतते जाते हैं। जैसे वर्ष बीतते ऐसे जो भी पुरानी चाल है वह बीत जाए। और नया उमंग, नया संकल्प सदा रहे। तो यही सम्पूर्णता की निशानी है। पुराने को तो दीपमाला में सभी ने खत्म किया है ना! दिवाली मनाई थी ना! तो दिवाली में पुराना खत्म हुआ। अभी सब नया हो। अच्छा।

प्रश्न - बाप के समीप आने का आधार क्या है?

उत्तर - विशेषतायें। विशेषताओं ने ही विशेष बाप के समीप लाया है। अभी जो विशेषतायें स्वयं में हैं वह औरों के आगे विशेष सैम्पल बन प्रत्यक्ष होना है। जो विशेषतायें हैं वह सेवा के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होती हैं। जो विशेषतायें बाप ने भरी हैं उन सबको सेवा में लगाओ। विशेषता को साकार में लाने से सेवा की सबजेक्ट में भी मार्क्स मिल जाती हैं। अनुभव सुनाओ, अपने पास सिर्फ नहीं रखो। अनुभव को सेवा में लाओ तो औरों का भी उमंग-उत्साह बढ़ेगा। बापदादा सदा विशेष आत्माओं की विशेषता को देखते हैं। और उसी से कार्य कराते हैं। अच्छा-